Thursday 2 June 2016

चौराहा +

जीवन की इस सरल राह पर आया जो इक चौराहा !
कदम वहीं पर ठिठक गये
किस ओर बढू  , किस राह चलूं ! 

राहें आपस में लड़ती थीं
सब कहती मैं हूं आसान ,
चुनो मुझे और  जल्दी छूलो 
अपने सपनो का आसमान ,

दुविधा में तब मन पड़ जाता
किसे चुनू किसको छोडू
ना जाने क्या मिलना आगे
कहां चलूं किस ओर मुड़ू !

सब पे एक साथ जाने को 
ये पागल मन करता है
पर मन को समझा कर के
दुख के घूंट पिला कर के
इक राह पे आगे बढा दिया
मानो सारी इच्छाओं को मीठी नींद सुला दिया

बस सुकून था इस मसले का 
की अब एक राह होगी
की इन आंखों ने देख लिया फ़िर एक नया चौराहा ! :')
आयुष

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