Wednesday 8 June 2016

घर 🏠

घर , जहां खुशियां बसती हैं .
घर जहां खुशियां हंसती हैं .
दिन भर थकने के बाद जहां जाने को जी चाहे.
एक बार मरने के बाद
जहां जीने को जी चाहे.

मन में लालसा लिये , यश कीर्ती कमाने की .
लोभ ये की सारी खुशियां
जीत लें ज़माने की .
चलते चलते जाने कितना दूर आ गया हूं  मैं ,
राह ही नहीं दिखती वापस घर जाने की .

अब तो मोह भंग हो गया है इस सफलता से भी,
त्रप्त और त्रस्त हो गया हूं भाग दौड़ से भी .
नहीं पाना जीत कोई , कोई मंज़िल नहीं पाना .
वो सुकून चाहिये है , हां मुझे अब घर है जाना .




आयुष :')

1 comment:

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