Thursday 16 June 2016

खोया बचपन

वो सादे से क ख ग घ ,
पढे हुए कई साल हो गये,
खूब तज़ुर्बा कमा लिया अब ,
हमे बडे हुए कई साल हो गये !
भागम भाग दौड़ना अब जीवन का हिस्सा है
नंगे पैर यूहीं घांस पे
चले हुए कई साल हो गये

अब तो रुकने के नाम पे
बस चाल धीमी होती है
वो नदिया की धारा में
खडे हुए कई साल हो गये

एसा नहीं की अब  बचपन की याद नहीं आती है ,
आके वो ही तो सूखी
पलकों की प्यास बुझाती है
मां के प्यार से सने वाले वो
अब सूखे सूखे गाल हो गये
प्यार से काढा करती थी वो  अब तो
आडे तिरछे बाल हो गये!

बस रोना और हंसना होता था ,
अब तो जाने कितने हाल हो गये :')
आदत है पर इन सबकी अब
हमे बडे हुए कई साल हो गये ! :')
आयुष :)

Wednesday 8 June 2016

घर 🏠

घर , जहां खुशियां बसती हैं .
घर जहां खुशियां हंसती हैं .
दिन भर थकने के बाद जहां जाने को जी चाहे.
एक बार मरने के बाद
जहां जीने को जी चाहे.

मन में लालसा लिये , यश कीर्ती कमाने की .
लोभ ये की सारी खुशियां
जीत लें ज़माने की .
चलते चलते जाने कितना दूर आ गया हूं  मैं ,
राह ही नहीं दिखती वापस घर जाने की .

अब तो मोह भंग हो गया है इस सफलता से भी,
त्रप्त और त्रस्त हो गया हूं भाग दौड़ से भी .
नहीं पाना जीत कोई , कोई मंज़िल नहीं पाना .
वो सुकून चाहिये है , हां मुझे अब घर है जाना .




आयुष :')

Thursday 2 June 2016

चौराहा +

जीवन की इस सरल राह पर आया जो इक चौराहा !
कदम वहीं पर ठिठक गये
किस ओर बढू  , किस राह चलूं ! 

राहें आपस में लड़ती थीं
सब कहती मैं हूं आसान ,
चुनो मुझे और  जल्दी छूलो 
अपने सपनो का आसमान ,

दुविधा में तब मन पड़ जाता
किसे चुनू किसको छोडू
ना जाने क्या मिलना आगे
कहां चलूं किस ओर मुड़ू !

सब पे एक साथ जाने को 
ये पागल मन करता है
पर मन को समझा कर के
दुख के घूंट पिला कर के
इक राह पे आगे बढा दिया
मानो सारी इच्छाओं को मीठी नींद सुला दिया

बस सुकून था इस मसले का 
की अब एक राह होगी
की इन आंखों ने देख लिया फ़िर एक नया चौराहा ! :')
आयुष