Wednesday 18 May 2016

मेरी कलम

कलम ये मेरे जब तक जी में जान है ,चलती जायेगी .
मैं इसमे ढलता जाऊंगा ,
ये मुझको लिखती जायेगी .
जितनी मुझ में सान्से हैं ,
उतनी स्याही है इस में ,
जितना अनुराग मुझ में है ,
उतना सम्मोहन है इस में .
ये ही मेरी है ज़ुबान,
जो मेरा  अन्तर्मन  लिखती.
जो भी मन में पकता है
वो शब्दों मे परोसती .
मेरे सारे गीत मेरी कलम गाते जायेगी ,
सान्से थमी मान लेना ,
जो मेरी कलम रुक जायेगी .

आयुष :)

Monday 16 May 2016

संतोष

शाम की चंचलता में , मन मेरा वीरान था.
हर आज मैं अपने 'कलों' से परेशान था.
जो बीत गया वो नीरस था,
जो आयेगा वो नीरस है.
निकल गया मैं बाहर सोच ये ,
क्या सब में इतना धीरज है ?
कौतहूल को पहला मील का पत्थर घर के पास मिला, कूडा कर कट बीनता बच्चा ,
लेकर चेहरा खिला खिला 
मैने पुछा पढो लिखो ये कचरा क्यूं उठाते हो,
क्या कुछ बनना नहीं चाहते ?
स्कूल क्यू नहीं जाते हो ? 
वो मुझको तक कर के बोला , पैसे नहीं हैं मेरे पास.
खुशी नहीं ये कर के , पर होना नहीं है मुझे उदास .
अभी तो ये ही मेरी ज़िंदगी , चाहे कितना चीखुं रो रो के.
होगा अच्छा जब होना होगा ,
अभी क्यू ना  जियूं मैं खुश हो के.
उन थोडे से शब्दों ने,
मुझे अंदर तक झंकझोर दिया .
असंतोष को तोड़ा मेरे,
धक्का खुशियों की ओर दिया .
उस एक मील के पत्थर ने. मुझे कोसो दूर पहुंचा दिया ...
जो रूखी रूखी रहती थी,
उन्हे  फ़िर  चंचल शाम सा बना दिया .
आयुष जैन
:)