Monday 21 March 2016

लकीरों का घर

जो खतम बचपने का पहर हो गया है ,
ये माथा लकीरों का घर हो गया है .

समझ जो है पा ली अब अच्छे बुरे की ,
अब अच्छा बुरा ये शहर हो गया है .
जो है समझदारी अब दुनियागिरी की ,
वो मासूमियत को ज़हर हो गया है .

समझ में है आने लगी ज़िंदगी अब ,
जो बिल्कुल ही ऐसी नहीं दिखती थी तब.
वो बिन सोचे समझे की खिलखिलाहटें
थीं ,
कहीं दूर जा कर जो हैं बस गयीं अब .
मुस्कुराहटो पर भी मानो 'कर ' हो गया है ,
ये माथा लकीरों का घर हो गया है .

वक्त तब गुज़र जाता था खुद की बक बक में ,
वक्त अब नहीं है खुद से पल भर बतियाने को.
दिन भर निकल जाता था मिट्टी के घर बनाने में ,
अब दिन भर निकल जाता है 'सच का घर' बनाने को.
होड़ हुड़दंग जो मचा है
सफल बन ने को,
वो मन के सुकूं को कहर हो गया है .
.
जो खतम बचपने का पहर हो गया है ,
ये माथा लकीरों का घर हो गया है .

आयुष
:')

Wednesday 16 March 2016

मेरी सुन !

मत भटक मेरे तू मीत मेरी सुन,
पहले मन की प्रीत तेरी सुन !
छोटी हार से सीख बड़ा
सा ,
होगी तेरी जीत मेरी सुन !

माना मन विचलित है तेरा ,  चल हलचल सी रहती है
जिन आंखों से सपने देखे
वो आंखे नम रहती हैं !
मन करता है कोई हमराही आकर के समझा दे,
मन में आत्मविश्वास जगा के राह ठीक सी दिखला दे!
पर सुन इस दुनिया में
कोई जीवन आसान नहीं ,
सबकी अपनी तकलीफें
अपने अपने दर्द गमी !

तो तू खुद ही सोच ये कैसे तुझको प्रेरित करे कोई !
खुद से अच्छी प्रेरणा तुझको ना दे सकता और कोई !
जो है बस सब तू खुद ही है
खुद का खुदा तू खुद ही है
मत तक रे तू राह किसी की
करना सब कुछ खुद ही है !

उठ जाग खड़ा हो पैरो पर
और चल पड़ मंजिल पाने को ,
खुद से खुद में जोश फूंक ले
सफलता की ये रीत मेरी सुन !
क्या है मन की प्रीत तेरी सुन,
होगी तेरी जीत मेरी सुन !!



- आयुष

Sunday 13 March 2016

बचपन की बारिश

सो रहा था मैं की कौन्धी एक सौन्धी सी महक ,
गर्जना थी बादलों की
और बून्दो की चहक.

शनै: शनै: काला वर्ण आसमां का हो रहा .
गर्मी का प्रताप मीठे
अंधकार में खो रहा .

देख बून्दो को बरसते ,
बच्चे खुल के खिलखिलाते ,
और जब बिजली कडकती,
मां से आके लिपट जाते.

ज्यों ज्यों मिट्टी भीगती है ,
मन ये मेरा भीग जाता.
सूंघ ये मिट्टी की खुश्बू ,
अपना बचपन याद आता.

पहली बून्द गिरते ही ,
आंगन में दौड़ जाते थे.
जन्मदिन की तरह ही,
"बारिशें" मनाते थे.

आज बून्द देख के ही ,
मन प्रफुल्लित हुआ जाता.
सूंघ के मिट्टी की खुश्बू ,
अपना बचपन याद आता.


-आयुष

 :')