Thursday 4 July 2019

दुनिया

सच मुच सच से जूझती दुनिया,
द्वेष, स्वार्थ और झूठ की दुनिया,
इंसानों के बोझ तले ये,
भीतर भीतर टूटती दुनिया.

रातों और दिनों के बीच,
दिन रात बस घूमती दुनिया.
सुकूँ खोजने निकली है ,
और चकाचौंध को चूमती दुनिया.

दौड़े भागे,  खाये सोये,
पर जीवन से छूटती दुनिया.
कुछ तो है,  वरना यूँही ना,
वक़्त वक़्त पे रूठती दुनिया.

क्या सच है और क्या मिथ्या है,
यही पहेली बुझती दुनिया.
कब सीखी ये दुनियादारी,
चीख चीख कर पूछती दुनिया.

आयुष