Tuesday 14 February 2017

राह

राह
अपने ही सपनों में सो सा गया हूँ
इस भीड़ में कहीं मैं खो सा गया हूँ.
बिखरना ही है ये, या फ़िर मैं शायद ,
किसी और धागे पिरौ सा गया हूँ.
घर से मैं तकदीर ले के चला था,
और मंज़िल की तस्वीर ले के चला था.
मैं अपनी गति से चले जा रहा था..
जज़्बा जुनूँ संग ले जा रहा था..
फ़िर रास्ते में चौराहा आया
मेरे रास्ते में नया मोड़ लाया..
चुनी राह जो वो यहाँ तक ले आई,
यही राह मुझे अब लगे है पराई..
यहाँ आके अब गुम हो सा गया हूँ
अपने ही सपनों में सो सा गया हूँ..
आयुष