Sunday 26 November 2017

पहली तनख्वाह ..

लगा  मानो रुसवाईयाँ भी रुसवाह मिली
आज हाथ में जब पहली तनख्वाह मिली..
मन झूमा, हर्षाया.. कुछ मैंने था कमाया..
वो चंद नोट थाम, मैं फूला ना समाया.. 

चाहे कितना छुपाता, इक मुस्कान आ ही जाती ..
अब देखो लूँगा क्या क्या , सबको वो बताती..
घर पहुँच सबसे पहले, खोला फ़ोन में बाज़ार
नया फ़ोन , कपड़े, जूते, कितना कुछ लेना था यार!

पर फिर अचानक से, माँ की याद आई..
कभी मैंने उसे, एक साड़ी ना दिलाई..
पिताजी ने कब से नई शर्ट ना ली..
बड़े भाई की भी कलाई है खाली..
भाभी ने भी तो कभी कुछ ना माँगा ..
और बीवी जिसने सदा मुझको बाँधा ..
बच्चों को भी तो खिलौने दिला दूं..
बहनों को भी तो कुछ कपड़े मैं ला दूँ..

बस फिर क्या था, मैं जुट गया काम पर..
मन ही मन खुश होता, हर एक के ईनाम पर..

देखते ही देखते, मैंने अपनी झोली भर ली,
खुशियां खरीद के , पहली तनख्वाह खर्च कर ली आयुष :)