Sunday 10 April 2016

मैं और किस्मत

खेल ले जी भर के ऐ किस्मत ..
जीत ले मुझसे जी भर के .
मैं भी थोडा नादां हूं,
खेल रहा हूं लड़ लड़ के.

करता हूं संघर्ष बहुत ,
कठिन भी है तुझसे लड़ना 
करता हूं कोशिश पूरी ,
पर बस तू साथ नहीं है ना .

पर कोई ना मैं सीख रहा हूं,
और मैं जल्दी सीखूंगा .
तू मोम सी पिघलेगी जब मैं ,
तुझमे लौ मेहनत की झोंकूंगा.

सुन ऐ मेरी  किस्मत यूं तो हुनर भी मुझ में काफ़ी है
शायद मेरा समर्पण ही है ,जो थोडा नाकाफी है .
पर इक दिन मैं दूर करून्गा अपनी इन कमियों को भी .

मेहनत और समर्पण होगा 
की साथ रहेगी तब तू भी .
तुझको मंत्रमुग्ध कर के मैं तेरा साथ कमाऊन्गा .
सीख के तेरा हुनर तुझसे ही .
मैं तुझसे जीत जाऊन्गा .
:')
आयुष :)

13 comments:

  1. Great...it's really good to see that you are writing in Hindi...this generation is struggling for young Hindi poets..keep it up..

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  2. सुन ऐ मेरी किस्मत यूं तो हुनर भी मुझ में काफ़ी है
    शायद मेरा समर्पण ही है ,जो थोडा नाकाफी है .
    sale har bar ek na ek line dil ko chhed dene wali likh hi ddeta hai tu

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  3. आयुष भाइ ..अपनी मातृभाषा को जिवन्त बनाये..रखने का ये आपका प्रयाश निसंदेह सराहनीय है....
    कविता तो लजवाब है ही..!!

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